भारतीय क्रांतिकारी माक्र्सवादी पार्टी (आर.एम.पी.आई.) की केंद्रीय समिति की बैठक पार्टी के चेयरमैन साथी के.गंगाधरण की अध्यक्षता में 2-4 जुलाई 2019 को चीमा भवन, जालंधर (पंजाब) में संपन्न हुई।
बैठक में पार्टी महासचिव साथी मंगत राम पासला द्वारा वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्थितियों संबंधी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसमें रेखांकित किया गया कि अभी हाल ही में संपन्न हुए लोक सभा चुनाव द्वारा भाजपा के नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार का पुन: राजगद्दी पर कब्जा कर लेना ना केवल हैरानीजनक है अपितु जनतांत्रिक आंदोलन के लिए अत्यंत चिंता का विषय भी है। अपने पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार साम्राज्यवादियों के हित संरक्षण हेतु निर्मित की गई नवउदारवादी आर्थिक नीतियां लागू करती रही है जिस के चलते श्रमिक वर्गों की मुसीबतों में भारी वृद्धि हुई है। यह तय है कि ये सरकार अपने वर्तमान कार्यकाल में भी उन्हीं राष्ट्रविरोधी नीतियों को और मजबूती से लागू करने की दिशा में तेजी में अग्रसर होगी। सरकार द्वारा श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधनों को लेकर दिखाई जा रही तत्परता तथा रेलवे एवं सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य महत्त्वपूर्ण ईकाईयों के निजीकरण की तेज की गई प्रक्रिया से उक्त अंदेशों की पुष्टि भली भांति होती है। परिणामस्वरूप, भारतीय जनसंख्या के विशाल भागों को मूल्यवृद्धि, भुखमरी, कंगाली, कुपोषण, कर्ज के चलते आत्म हत्याएं, स्वास्थ्य सेवाओं तथा शिक्षा सहूलतों से पूर्णत: वंचित होने आदि जैसी मुसीबतों की और अधिक मार झेलने को बाध्य होना पड़ेगा। इन नीतियों के चलते पहले भी जबर्दस्त मंदी के बोझ तले कराह रहे लघु तथा मध्यम उद्योगों एवं कृषि जो हमारे यहां रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है, कि स्थिति और भी दयनीय हो जाएगी। इस स्थिति में पहले ही सभी रिकार्ड तोड़ चुकी बेरोजगार में अधिकाधिक वृद्धि होगी। यह नीतियां न केवल किसानों तथा वनवासियों को भूमि तथा जंगलों से बेदखल करने का विध्वंसक हथियार हैं बल्कि यह धरती पर जीवन एवं वनस्पति के लिए अनिवार्य जलवायु एवं पर्यावरण का भी खात्मा कर देगीं।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि उक्त जनविरोधी नीतियों के लागू किये जाने के विरुद्ध किये जाने वाले किसी भी जनप्रतिरोध को दबाने हेतु मोदी सरकार जिन बर्बर दमनकारी कदमों को सहारा लेगी उनकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह भी नोट किया गया है कि मोदी सरकार की चालक भाजपा लुटेरे पूंजीपति वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाला साधारण राजनैतिक दल नहीं है। अपितु इसकी चाबी देश को कट्टर हिन्दु राष्ट्र में बदलने के लिए प्रयत्नशील राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में है। अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु आरएसएस की मुख्य टेक सांप्रदायिक धु्रवीकरण तथा दंगों पर है। केंद्र में अपनी कठपुतली मोदी सरकार की उपस्थिती का लाभ लेते हुए संघ ने अपने इस कुपित लक्ष्य की पूर्ति के प्रयत्न और तीव्र कर दिये हैं। हाल ही के दिनों में देश भर में जनूनी भीड़तंत्र द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निर्दयता से पीट-पीट कर कत्ल करने की घटनाओं में हुई अभूतपूर्व वृद्धि आरएसएस के इन्हीं प्रयत्नों का जीवंत प्रमाण है। ऐसे ही बर्बर्तापूर्ण हमलों में स्त्रियों तथा दलितों को निशाने पर लेना इस साजिश की अगली कड़ी है।
मीटिंग की तरफ से, गुजरात का मुख्यमंत्री होते हुए नरेन्द्र मोदी को दंगों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते कानून प्रक्रिया के दायरो में लाने वाले आई पी एस अधिकारी संजीव भाट को बदले की भावना के चलते जेल में बंद किए जाने की निंदा करते उस की बिना देरी रिहाई की माँग की गई।
रिपोर्ट द्वारा सांप्रदायिक-फाशीवाद के अंत तथा लोगों की रोजी-रोटी की समस्याओं के तार्किक समाधान के लिए आंदोलनों का निर्माण भविष्य के प्राथमिक कार्यों के रूप में चिह्रित किये गये। उक्त कार्यों की सफलता हेतु आरएमपीआई की स्वतंत्र गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ वाम शक्तियों के सांझा मंच तथा विशाल जनलामबंदी पर आधारित सांझा संघर्षों का निर्माण करने का लक्ष्य तय किया गया। इस दिशा में सांप्रदायिकता, अंधराष्ट्रवाद, तानाशाह रूझानों तथा मनुवादी मानसिकता के विरुद्ध वैचारिक युद्ध तीव्र करने हेतु भी निर्णय लिए गये।
सभी सदस्यों द्वारा रिपोर्ट में रेखांकित राजनैतिक दिशा का पूर्णरूपेन समर्थन करते हुए दिये गये सुझावों सहित रिपोर्ट सर्वसम्मति से पारित की गई। इस दिशा में निर्णय लेते हुए सघन संघर्षों के पथ पर आगे बढऩे का सभी राज्य समितियों का आह्वान किया गया। बैठक द्वारा एमसीपीआई(यू) के साथ चल रही ऐकीकरण की प्रक्रिया को पूर्णता की ओर ले जाने हेतु भी ठोस फैसले किये गये।
बैठक में पार्टी महासचिव साथी मंगत राम पासला द्वारा वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्थितियों संबंधी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसमें रेखांकित किया गया कि अभी हाल ही में संपन्न हुए लोक सभा चुनाव द्वारा भाजपा के नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार का पुन: राजगद्दी पर कब्जा कर लेना ना केवल हैरानीजनक है अपितु जनतांत्रिक आंदोलन के लिए अत्यंत चिंता का विषय भी है। अपने पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार साम्राज्यवादियों के हित संरक्षण हेतु निर्मित की गई नवउदारवादी आर्थिक नीतियां लागू करती रही है जिस के चलते श्रमिक वर्गों की मुसीबतों में भारी वृद्धि हुई है। यह तय है कि ये सरकार अपने वर्तमान कार्यकाल में भी उन्हीं राष्ट्रविरोधी नीतियों को और मजबूती से लागू करने की दिशा में तेजी में अग्रसर होगी। सरकार द्वारा श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधनों को लेकर दिखाई जा रही तत्परता तथा रेलवे एवं सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य महत्त्वपूर्ण ईकाईयों के निजीकरण की तेज की गई प्रक्रिया से उक्त अंदेशों की पुष्टि भली भांति होती है। परिणामस्वरूप, भारतीय जनसंख्या के विशाल भागों को मूल्यवृद्धि, भुखमरी, कंगाली, कुपोषण, कर्ज के चलते आत्म हत्याएं, स्वास्थ्य सेवाओं तथा शिक्षा सहूलतों से पूर्णत: वंचित होने आदि जैसी मुसीबतों की और अधिक मार झेलने को बाध्य होना पड़ेगा। इन नीतियों के चलते पहले भी जबर्दस्त मंदी के बोझ तले कराह रहे लघु तथा मध्यम उद्योगों एवं कृषि जो हमारे यहां रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है, कि स्थिति और भी दयनीय हो जाएगी। इस स्थिति में पहले ही सभी रिकार्ड तोड़ चुकी बेरोजगार में अधिकाधिक वृद्धि होगी। यह नीतियां न केवल किसानों तथा वनवासियों को भूमि तथा जंगलों से बेदखल करने का विध्वंसक हथियार हैं बल्कि यह धरती पर जीवन एवं वनस्पति के लिए अनिवार्य जलवायु एवं पर्यावरण का भी खात्मा कर देगीं।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि उक्त जनविरोधी नीतियों के लागू किये जाने के विरुद्ध किये जाने वाले किसी भी जनप्रतिरोध को दबाने हेतु मोदी सरकार जिन बर्बर दमनकारी कदमों को सहारा लेगी उनकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह भी नोट किया गया है कि मोदी सरकार की चालक भाजपा लुटेरे पूंजीपति वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाला साधारण राजनैतिक दल नहीं है। अपितु इसकी चाबी देश को कट्टर हिन्दु राष्ट्र में बदलने के लिए प्रयत्नशील राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में है। अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु आरएसएस की मुख्य टेक सांप्रदायिक धु्रवीकरण तथा दंगों पर है। केंद्र में अपनी कठपुतली मोदी सरकार की उपस्थिती का लाभ लेते हुए संघ ने अपने इस कुपित लक्ष्य की पूर्ति के प्रयत्न और तीव्र कर दिये हैं। हाल ही के दिनों में देश भर में जनूनी भीड़तंत्र द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निर्दयता से पीट-पीट कर कत्ल करने की घटनाओं में हुई अभूतपूर्व वृद्धि आरएसएस के इन्हीं प्रयत्नों का जीवंत प्रमाण है। ऐसे ही बर्बर्तापूर्ण हमलों में स्त्रियों तथा दलितों को निशाने पर लेना इस साजिश की अगली कड़ी है।
मीटिंग की तरफ से, गुजरात का मुख्यमंत्री होते हुए नरेन्द्र मोदी को दंगों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते कानून प्रक्रिया के दायरो में लाने वाले आई पी एस अधिकारी संजीव भाट को बदले की भावना के चलते जेल में बंद किए जाने की निंदा करते उस की बिना देरी रिहाई की माँग की गई।
रिपोर्ट द्वारा सांप्रदायिक-फाशीवाद के अंत तथा लोगों की रोजी-रोटी की समस्याओं के तार्किक समाधान के लिए आंदोलनों का निर्माण भविष्य के प्राथमिक कार्यों के रूप में चिह्रित किये गये। उक्त कार्यों की सफलता हेतु आरएमपीआई की स्वतंत्र गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ वाम शक्तियों के सांझा मंच तथा विशाल जनलामबंदी पर आधारित सांझा संघर्षों का निर्माण करने का लक्ष्य तय किया गया। इस दिशा में सांप्रदायिकता, अंधराष्ट्रवाद, तानाशाह रूझानों तथा मनुवादी मानसिकता के विरुद्ध वैचारिक युद्ध तीव्र करने हेतु भी निर्णय लिए गये।
सभी सदस्यों द्वारा रिपोर्ट में रेखांकित राजनैतिक दिशा का पूर्णरूपेन समर्थन करते हुए दिये गये सुझावों सहित रिपोर्ट सर्वसम्मति से पारित की गई। इस दिशा में निर्णय लेते हुए सघन संघर्षों के पथ पर आगे बढऩे का सभी राज्य समितियों का आह्वान किया गया। बैठक द्वारा एमसीपीआई(यू) के साथ चल रही ऐकीकरण की प्रक्रिया को पूर्णता की ओर ले जाने हेतु भी ठोस फैसले किये गये।
No comments:
Post a Comment