शहीद- ए- आज़म भगत सिंह नगर ( चंडीगढ़) 25
नवंबर : साम्रज्यवादी भूमंडलीकरन पूँजीवादी लूट का एक आधुनिक रूप है।
दुनिया भर के आम लोगों को फंसाने के लिए एक भ्रम जाल है जिसको तोडऩा बहुत
लाजि़म है। यह जिम्मेवारी वाम शक्तियां ही निभा सकतीं हैं और आर. एम. पी.
आई. इस जिम्मेवारी को सुह्रिृदता के साथ निभाएगी। यह बात यहाँ चल रहे पर्टी
की पहले चार दिवसीय सर्व भारत सम्मेलन में राजनैतिक प्रस्ताव का मसौदा पेश
करते आर. एम. पी. आई. महासचिव कामरेड मंगत राम पासला ने कही।
साथी पासला ने कहा कि साम्राज्यावादी भूमंडलीकरन एक ऐसा फ्रॉड है जिस को समझना बहुत ज़रूरी है, अगर यह फ्रॉड नहीं तो दुनिया भर में साम्राज्य के मुहरैली अमरीका का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यह ना कहता कि अमरीका सिफऱ् अमरीकी लोगों के लिए ही है। वह दूसरे देशों से अमरीका आने वाले प्रवासी कामगारों पर पाबंदियां न लगाता। उन्होंने ने कहा कि लोगों की भलाई सिफऱ् और सिफऱ् समाजवादी व्यवस्था के अधीन ही हो सकती है। पूँजीवादी व्यवस्था में लोगों, खासकर मज़दूर वर्ग की लूट ही होती रहेगी। सन 2008 के आर्थिक संकट ने यह सिद्ध कर दिया है कि पूँजीवाद अपने आप में ही अंदरूनी विरोधताईयों के साथ भरा हुआ है। इसके उलट चीन की समाजवादी व्यवस्था मजबूतकी के साथ आगे बढ़ रही है और अमरीका की घेराबन्दी के बावजूद क्यूबा जैसा छोटा सा देश समाजवादी व्यवस्था के सिर पर अचल आगे अधिक रहा है।
सम्मेलन में पेश राजनैतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि विश्व आर्थिक संकट ने भारतीय अरथचारे को अपनी लपेट में लिया हुआ है। इसका कोई भी क्षेत्र इस संकट से अछूता नहीं रहा। आज़ादी के बाद के 70 सालों के दौरान पूँजीवादी प्रबंध के लुटेेरे स्वभाव के कारण इसकी जन्मजात आर्थिक अस्थिरता अब राजनैतिक अस्थिरता में बदल चुकी है। जिसका प्रगटावा पूंजीपति जागीरदार पार्टियाँ के नेताओं के प्रति लोगों में स्थायी बेभरोसगी के रूप में हो रहा है। इन पार्टियों के नेतायों के भ्रष्टाचार, ग़ैर नैतिक, ग़ैर लोकतांत्रिक और आपाधापी वाली गतिविधियों में लिप्त होने के कारण लोग इन पार्टियाँ को नफऱत करने लग पड़े हैं तथा एक लोकपक्षीय समर्थ राजनैतिक- आर्थिक बदल की खोज में हैं। ऐसे में आज के हालात को किसी प्रतिक्रियावादी फाशीवादी प्रबंध की तरफ आकर्षित होने से रोकने के लिए मौजूदा अवस्थाओं में माकर््सवादियें से स्पष्ट सामाजिक-आर्थिक बदल उप्लब्ध करवाने हेतु तुरंत ज़रूरी और प्रभावशाली दख़ल की माँग करती हैं। इस में यह भी नोट किया गया है कि भारत के वामपंथी इतने कमज़ोर और बाँटे हुए हैं कि इस विशाल कार्य की जि़म्मेदारी नहीं निभा सकते। लंबे समय से वाम दल कुछ सैद्धांतिक-राजनैतिक मुद्दों पर बुरी तरह बँटे हुए हैं। अगर एक हिस्सा वैज्ञानिक मार्कसवादी-लेनिनवादी रास्ते से अति वामपंथ भटकाव का शिकार है तो दूसरा बड़ा हिस्सा अभी भी पूंजीपति-जागीरदार पार्टियों का पिछलग्गू बना हुआ है। ऐसे माहौल में आर. एम. पी. आई. इन सब चुणौतियें के मुकाबले के लिए एक मज़बूत वाम मोर्चा बनाने के लिए सभी वाम शक्तियों को एकजुट करने का हर संभव यत्न करेगी।
यह प्रस्ताव पेश करते हुए मोदी सरकार पर तीखा हमला करते हुए कामरेड पासला ने कहा कि मोदी हकूमत को देश के लोगों की बजाय साम्राज्यावादी देशों, बहुराष्ट्रीय निगमों और कॉर्पोरेट घरानों के हितों की ज्यादा चिंता है। इस सरकार की नोटबन्दी फ़ाल्तू की एक कवायद साबित हुई है जिस ने भारतीय लोगों की दुश्वारियों में अंतहीन बढ़ौत्तरी की है। जी. एस. टी. के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह अति भद्दी किस्म की सरकारी लूट है जो पहले ही टैकसें के भारी बोझ के नीचे दबे लोगों पर ओर भार लादने का ज़रिया है। इस त्रिआयामी अजारेदाराना, पूँजीवादी और प्रशाशकी लूट के मकड़ जाल ने लोगों को बेहाल करके रख दिया है। इस लूट के विरुद्ध संघर्ष आर.एम.पी.आई. की प्राथमिकताओं में से एक है।
डैलीगेटें की तरफ से ज्वलंत और रचनात्मिक विचार-विमर्श उपरांत यह राजनैतिक प्रस्ताव सर्व समिति से स्वीकृत कर लिया गया।
इस मौके सी. पी. आई. ( एम. एल.) लिबरेशन की पोलिट ब्यूरो की सदस्य कामरेड कविता कृष्णन अपनी पार्टी की तरफ से इस अखिल भारतीय सम्मेलन की बहुआयामी सफलता के लिए क्रांतिकारी शुभ इच्छाएं भेंट करने के लिए पहुँचीं। उन्होने अपने संबोधन में कहा कि आर. एम. पी. आई. व लिबरेशन मार्कसवाद- लैनिनवाद के वैज्ञानिक फलसफे, महान अक्तूबर इंकलाब, भारत के स्वतंत्रता संग्राम और अलग अलग समय पर चली लोग पक्षीय लहरों के साकारात्मक पहलूयों से प्रेरणा लेती हैं और यह हमारी दोनों की सांझ का आधार है। इस के बिना लोगों के जीवन और स्वाभिमान की रखवाली के लिए लड़े जाने वाले संर्घषों की तीव्रता, उत्साह, प्रतिबद्धता और लगातारता भी हमारी वर्तमान में और भविष्य की सांझ का आधार स्तंभ हैं।
साथी पासला ने कहा कि साम्राज्यावादी भूमंडलीकरन एक ऐसा फ्रॉड है जिस को समझना बहुत ज़रूरी है, अगर यह फ्रॉड नहीं तो दुनिया भर में साम्राज्य के मुहरैली अमरीका का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यह ना कहता कि अमरीका सिफऱ् अमरीकी लोगों के लिए ही है। वह दूसरे देशों से अमरीका आने वाले प्रवासी कामगारों पर पाबंदियां न लगाता। उन्होंने ने कहा कि लोगों की भलाई सिफऱ् और सिफऱ् समाजवादी व्यवस्था के अधीन ही हो सकती है। पूँजीवादी व्यवस्था में लोगों, खासकर मज़दूर वर्ग की लूट ही होती रहेगी। सन 2008 के आर्थिक संकट ने यह सिद्ध कर दिया है कि पूँजीवाद अपने आप में ही अंदरूनी विरोधताईयों के साथ भरा हुआ है। इसके उलट चीन की समाजवादी व्यवस्था मजबूतकी के साथ आगे बढ़ रही है और अमरीका की घेराबन्दी के बावजूद क्यूबा जैसा छोटा सा देश समाजवादी व्यवस्था के सिर पर अचल आगे अधिक रहा है।
सम्मेलन में पेश राजनैतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि विश्व आर्थिक संकट ने भारतीय अरथचारे को अपनी लपेट में लिया हुआ है। इसका कोई भी क्षेत्र इस संकट से अछूता नहीं रहा। आज़ादी के बाद के 70 सालों के दौरान पूँजीवादी प्रबंध के लुटेेरे स्वभाव के कारण इसकी जन्मजात आर्थिक अस्थिरता अब राजनैतिक अस्थिरता में बदल चुकी है। जिसका प्रगटावा पूंजीपति जागीरदार पार्टियाँ के नेताओं के प्रति लोगों में स्थायी बेभरोसगी के रूप में हो रहा है। इन पार्टियों के नेतायों के भ्रष्टाचार, ग़ैर नैतिक, ग़ैर लोकतांत्रिक और आपाधापी वाली गतिविधियों में लिप्त होने के कारण लोग इन पार्टियाँ को नफऱत करने लग पड़े हैं तथा एक लोकपक्षीय समर्थ राजनैतिक- आर्थिक बदल की खोज में हैं। ऐसे में आज के हालात को किसी प्रतिक्रियावादी फाशीवादी प्रबंध की तरफ आकर्षित होने से रोकने के लिए मौजूदा अवस्थाओं में माकर््सवादियें से स्पष्ट सामाजिक-आर्थिक बदल उप्लब्ध करवाने हेतु तुरंत ज़रूरी और प्रभावशाली दख़ल की माँग करती हैं। इस में यह भी नोट किया गया है कि भारत के वामपंथी इतने कमज़ोर और बाँटे हुए हैं कि इस विशाल कार्य की जि़म्मेदारी नहीं निभा सकते। लंबे समय से वाम दल कुछ सैद्धांतिक-राजनैतिक मुद्दों पर बुरी तरह बँटे हुए हैं। अगर एक हिस्सा वैज्ञानिक मार्कसवादी-लेनिनवादी रास्ते से अति वामपंथ भटकाव का शिकार है तो दूसरा बड़ा हिस्सा अभी भी पूंजीपति-जागीरदार पार्टियों का पिछलग्गू बना हुआ है। ऐसे माहौल में आर. एम. पी. आई. इन सब चुणौतियें के मुकाबले के लिए एक मज़बूत वाम मोर्चा बनाने के लिए सभी वाम शक्तियों को एकजुट करने का हर संभव यत्न करेगी।
यह प्रस्ताव पेश करते हुए मोदी सरकार पर तीखा हमला करते हुए कामरेड पासला ने कहा कि मोदी हकूमत को देश के लोगों की बजाय साम्राज्यावादी देशों, बहुराष्ट्रीय निगमों और कॉर्पोरेट घरानों के हितों की ज्यादा चिंता है। इस सरकार की नोटबन्दी फ़ाल्तू की एक कवायद साबित हुई है जिस ने भारतीय लोगों की दुश्वारियों में अंतहीन बढ़ौत्तरी की है। जी. एस. टी. के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह अति भद्दी किस्म की सरकारी लूट है जो पहले ही टैकसें के भारी बोझ के नीचे दबे लोगों पर ओर भार लादने का ज़रिया है। इस त्रिआयामी अजारेदाराना, पूँजीवादी और प्रशाशकी लूट के मकड़ जाल ने लोगों को बेहाल करके रख दिया है। इस लूट के विरुद्ध संघर्ष आर.एम.पी.आई. की प्राथमिकताओं में से एक है।
डैलीगेटें की तरफ से ज्वलंत और रचनात्मिक विचार-विमर्श उपरांत यह राजनैतिक प्रस्ताव सर्व समिति से स्वीकृत कर लिया गया।
इस मौके सी. पी. आई. ( एम. एल.) लिबरेशन की पोलिट ब्यूरो की सदस्य कामरेड कविता कृष्णन अपनी पार्टी की तरफ से इस अखिल भारतीय सम्मेलन की बहुआयामी सफलता के लिए क्रांतिकारी शुभ इच्छाएं भेंट करने के लिए पहुँचीं। उन्होने अपने संबोधन में कहा कि आर. एम. पी. आई. व लिबरेशन मार्कसवाद- लैनिनवाद के वैज्ञानिक फलसफे, महान अक्तूबर इंकलाब, भारत के स्वतंत्रता संग्राम और अलग अलग समय पर चली लोग पक्षीय लहरों के साकारात्मक पहलूयों से प्रेरणा लेती हैं और यह हमारी दोनों की सांझ का आधार है। इस के बिना लोगों के जीवन और स्वाभिमान की रखवाली के लिए लड़े जाने वाले संर्घषों की तीव्रता, उत्साह, प्रतिबद्धता और लगातारता भी हमारी वर्तमान में और भविष्य की सांझ का आधार स्तंभ हैं।
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